जनसंवाद डेस्क (आलेख- मनोज शर्मा): पत्रकारिता समाज का आईना होती है जो समाज की अच्छाई व बुराई को समाज के सामने लाती है। अब यदि पत्रकार और बुराई के बीच में सेटिंग हो जाती है तो न अच्छाई समाज के सामने आयेगी और न ही बुराई।
पत्रकारिता एक ऐसा शब्द है जो कि आम जनता की हर एक समस्याओं को सही रूप में समझकर एवं निस्वार्थ भाव से चुने गए जनप्रतिनिधियों के बीच अपनी बातों को रख सके। लेकिन आज तो स्थिति ऐसी है, कि पत्रकार अपनी लेखनी पत्रकारिता के माध्यम से है जो आम जनता की समस्याओं को चाहे जो स्थिति हो सरकार के सामने अपने बातों को बिल्कुल ही रखने का प्रयास नहीं करते हैं क्या ऐसी स्थिति में कहीं ना कहीं हमारे समाज में पत्रकारिता पर लोगों का जो विश्वास था मेरी समझ में ऐसा महसूस हो रहा है की हम लोग आज के समय में अपनी मूल स्थिति से हटकर अपना कार्य कर रहे हैं क्या यह समाज एवं राष्ट्र के लिए सही है
एक दौर था जब पत्रकार ने अपनी लेखनी के जरिए समाजिक हित में बड़े आंदोलनों को जन्म दिया व समाज ने पत्रकार को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ माना, लेकिन आज स्थितियां लगातार बदल रही हैं। पत्रकारिता पर व्यवसायिकता हावी हो गई है, जिस कारण पत्रकारिता के स्तर में लगातार गिरावट आ रही है। कुछ लोग निजी फायदे के लिए गले में प्रेस का पट्टा डालकर और हाथ में माइक थामे लोगो से वसूलीं करने से भी नहीं चुकते हैं, जिसका सीधा असर समाज पर पड़ रहा है व समाज में पत्रकार की छवि धूमिल हो रही है। कलम की आड़ में दलाली और चापलूसी की पराकाष्ठा पार गई है।
एक समय था जब एक पत्रकार की कलम में वो ताक़त थी कि उसकी कलम से लिखा गया एक-एक शब्द देश की राजधानी में बैठे नेता, राजनेता, व अधिकारियों की कुर्सी को हिला देता था,वहीँ आज कुछ तथाकथित पत्रकारों ने मीडिया को दलाली, ठेकेदारी और चापलूसी कर कमाई का साधन बना रखा है। अपनी धाक जमाने व गाड़ी पर प्रेस लिखाने के अलावा इन्हें पत्रकारिता या किसी से कुछ लेना देना नहीं होता। क्यूंकि सिर्फ प्रेस ही काफी है गाड़ी पर नम्बर की ज़रूरत नहीं, किसी कागज़ की ज़रूरत नहीं, हेलमेट की ज़रूरत नहीं मानो सारे नियम व क़ानून इनके लिए शून्य हो। क्यूंकि सभी इनसे डरते जो हैं चाहे नेता हो, अधिकारी हो, कर्मचारी हो, पुलिस हो, अस्पताल हो सभी जगह बस इनकी धाक ही धाक रहती है।
इतना ही नहीं अवैध कारोबारियों व अन्य भ्रष्टाचारी अधिकारियों, कर्मचारियों आदि लोगों से धन उगाही कर व हफ्ता वसूल कर अपनी जेबों को भर कर ऐश-ओ-आराम की ज़िन्दगी जीना पसंद करते हैं। खुद भ्रष्टाचार को बढ़ावा देते हैं, और भ्रष्टाचार को मिटाने का ढिंढोरा समाज के सामने पीटते हैं, मानो यही सच्चे पत्रकार हो। कुछ तथाकथित पत्रकार तो यहाँ तक हद करते हैं कि सच्चे, ईमानदार और अपने कार्य के लिए समर्पित रहने वाले अधिकारियों और कर्मचारियों को सुकून से उनका काम भी नहीं करने देते ऐसे ही लोग जनता में सच्चे पत्रकारों की छवि को धूमिल कर रहे है।