जनसंवाद, जमशेदपुर: नारायण आईटीआई लुपुंडीह चांडिल में शुक्रवार को भारतीय स्वतंत्रता सेनानी जय प्रकास नारायण जी की जयंती मनाई गई एवं उनके तस्वीर पर श्रद्धा सुमन अर्पित किया गया।
इस अवसर संस्थान के संस्थापक डॉक्टर जटाशंकर पांडेजी ने कहा कि भारतीय स्वतंत्रता सेनानी और राजनेता थे। उन्हें 1970 में इंदिरा गांधी के विरुद्ध विपक्ष का नेतृत्व करने के लिए जाना जाता है। इन्दिरा गांधी को पदच्युत करने के लिये उन्होने ‘सम्पूर्ण क्रांति’ नामक आन्दोलन चलाया। वे समाज-सेवक थे, जिन्हें ‘लोकनायक’ के नाम से भी जाना जाता है। 1999 में उन्हें मरणोपरान्त भारत रत्न से सम्मनित किया गया।
इसके अतिरिक्त उन्हें समाजसेवा के लिए १९६५ में मैगससे पुरस्कार प्रदान किया गया था। पटना के हवाई अड्डे का नाम उनके नाम पर रखा गया है। दिल्ली सरकार का सबसे बड़ा अस्पताल ‘लोकनायक जयप्रकाश अस्पताल’ भी उनके नाम पर है।पटना में अपने विद्यार्थी जीवन में जयप्रकाश नारायण ने स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा लिया। जयप्रकाश नारायण बिहार विद्यापीठ में शामिल हो गये, जिसे युवा प्रतिभाशाली युवाओं को प्रेरित करने के लिए डॉ॰ राजेन्द्र प्रसाद और सुप्रसिद्ध गांधीवादी डॉ॰ अनुग्रह नारायण सिन्हा द्वारा स्थापित किया गया था, जो गांधी जी के एक निकट सहयोगी रहे और बाद में बिहार के पहले उप मुख्यमंत्री सह वित्त मंत्री रहे।
वे 1922 में उच्च शिक्षा के लिए अमेरिका गये, जहाँ उन्होंने 1922-1929 के बीच कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय-बरकली, विसकांसन विश्वविद्यालय में समाज-शास्त्र का अध्ययन किया। महँगी पढ़ाई के खर्चों को वहन करने के लिए उन्होंने खेतों, कम्पनियों, रेस्त्रा में काम किया। वे मार्क्स के समाजवाद से प्रभावित हुए। उन्होंने एम॰ ए॰ की डिग्री हासिल की। उनकी माताजी की तबियत ठीक न होने के कारण वे भारत वापस आ गये और पी॰ एच॰ डी॰ पूरी न कर सके।
जयप्रकाश नारायण का जन्म बिहार के सिताब दियारा में 11 अक्टूबर 1902 में एक चित्रगुप्तवंशी कायस्थ परिवार में हुआ था I बिहार बृज किशोर प्रसाद की पुत्री प्रभावती के साथ इनका विवाह अक्टूबर 1920 में हुआ। वे डॉ॰ राजेन्द्र प्रसाद और सुप्रसिद्ध डॉ॰ अनुग्रह नारायण सिन्हा द्वारा स्थापित बिहार विद्यापीठ में शामिल हो गये। १९२९ में जब वे अमेरिका से लौटे, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम तेज़ी पर था। उनका सम्पर्क गांधी जी के साथ काम कर रहे जवाहर लाल नेहरु से हुआ। वे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का हिस्सा बने। 1932 में गांधी, नेहरु और अन्य महत्त्वपूर्ण कांग्रेसी नेताओं के जेल जाने के बाद, उन्होंने भारत में अलग-अलग हिस्सों में संग्राम का नेतृत्व किया।
अन्ततः उन्हें भी मद्रास में सितम्बर 1932 में गिरफ्तार कर लिया गया और नासिक के जेल में भेज दिया गया। यहाँ उनकी मुलाकात मीनू मसानी, अच्युत पटवर्धन, एन॰ सी॰ गोरे, अशोक मेहता, एम॰ एच॰ दाँतवाला, चार्ल्स मास्कारेन्हास और सी॰ के॰ नारायण स्वामी जैसे उत्साही कांग्रेसी नेताओं से हुई। जेल में इनके द्वारा की गयी चर्चाओं ने कांग्रेस सोसलिस्ट पार्टी (सी॰ एस॰ पी॰) को जन्म दिया। सी॰ एस॰ पी॰ समाजवाद में विश्वास रखती थी। जब कांग्रेस ने 1934 में चुनाव में हिस्सा लेने का फैसला किया तो जे॰ पी॰ और सी॰ एस॰ पी॰ ने इसका विरोध किया।1942 भारत छोडो आन्दोलन के दौरान वे हजारी बाग जेल से फरार हो गये।
1948 में उन्होंने कांग्रेस के समाजवादी दल का नेतृत्व किया और बाद में गांधीवादी दल के साथ मिलकर समाजवादी सोशलिस्ट पार्टी की स्थापना की। 19 अप्रील, 1954 में गया, बिहार में उन्होंने विनोबा भावे के सर्वोदय आन्दोलन के लिए जीवन समर्पित करने की घोषणा की। 1957 में उन्होंने लोकनीति के पक्ष में राजनीति छोड़ने का निर्णय लिया। इस अवसर पर मुख्य रूप से मौजूद रहे ऐडवोकेट निखिल कुमार शांति राम महतो नवनीत बड्स विद्याधर गोप (युवा मोर्चा से महामंत्री भाजपा ),निर्मल गोप ,पवन कुमार महतो, आदित्य गोप,मोजोद रहे।