जनसंवाद, खरसावां (रिपोर्ट- उमाकांत कर): कुचाई प्रखंड के दलभंगा में 39 मौजा बा: समिति व आदिवासी सामाजिक मंच कुचाई के द्वारा मुंडा सारना उरावं समाज ने सरहुल महापर्व-2024 का आयोजन काफी धुमधाम व भव्य से किया गया। 39 मौजा बा: समिति दलभंगा एवं आदिवासी सामाजिक मंच कुचाई के द्वारा दलभंगा हाई स्कूल मैदान तथा आदिवासी उरावं सरना समिति जिलिंगदा में सरहुल महापर्व का आयोजन किया गया।
सुबह ही समाज के लोग एकजुट होकर आदिवासी भेस के पहनाव व पारम्परिक रीति रिवाज के तहत पूजा-अर्चना किया। इसके पश्चात दलभंगा कुचाई के विभिन्न सरना स्थल तक शोभा यात्रा निकाली गई। पर्व त्योहार,पूजा उपासना,दया धर्म हमारी पहचान के तर्ज पर पूजारी के द्वारा प्राकृति की पूजा अर्चना पारम्परिक ढंग से किया। सरहुल महोत्सव को संबोधित करते हुए खरसावां विधायक दशरथ गागराई ने कहा कि आदिवासी प्राकृतिक के पूजारी है। हमारा जन्म उसी प्राकृति की गोद में हुआ है और प्रकृति हमारा रक्षक है। यह त्योहार समाज के लिए मात्र मस्ति उमंग का नही बल्कि प्राकृति पूजन का त्योहार है। प्राकृति ने हमे जीवनदान दिया है। अपनी गोद में पालकर बढाया है और अपनी ऑचल में हमें सुरक्षा प्रदान करती है। इसके बगैर हम जीवन की कल्पना नही कर सकते है। व
ही सह भाजपा नेत्री मीरा मुंडा ने कहा कि बंसत के आगमन के साथ ही प्राकृति अपना श्रृगार करना शुरू कर देती है। पेड़-पौधों में नये-नये कोमल पत्ते उग आते है। पैड़ फुलों से लदे जाते है। इस मनमोहक मौसम में लोगों के मन आनंद उमंग का संचार होता है। प्राकृति के रंगरूप भी बदलते जाते है। इस दौरान उरावं समाज के लोगों ने प्राकृति की पूजा अर्चना कर क्षेत्र की खुशहाली,अच्छी फसल, अच्छी बर्षा,गांव के सुख शांति के लिए भगवान से प्रार्थना की गई।
निःसंदेह “सरहुल“ जनजीवन का प्रतीक- धर्मेंद्र मुंडा
मुखिया करम सिंह मुंडा व अध्यक्ष धर्मेंद्र कुमार मुंडा ने कहा कि आदिवासियो का महान पर्व है सरहुल। निःसंदेह “सरहुल“ जनजीवन का प्रतीक है। यह पर्व मात्र एक पुजा ही नही है। बल्कि यह लोगों को पर्यावरण के प्रति प्यार का संदेश भी देता है। पर्व मुखिया मानसिंह मुंडा ने कहा कि उद्देश्य होता है सृष्टि संबंध और उसमें आदिवासियो की भुमिका को प्रतीकात्मक पुनरावृत्ति द्वारा कायम रखना है।
सरहुल नृत्य पर यह है विश्वास
आदिवासियो का विश्वास है कि साल वृक्षों के समूह में जिसे यहां सरना कहा जाता है। उससे महादेव निवास करते है। महादेव और देव पितरों को प्रसन्न करके सुख शांति की कामना के लिए चैत्र पूर्णिमा की रात को इस नृत्य का आयोजन किया जाता है। आदिवासियो का बैगा सरना वृक्ष की पूजा करते हैं। वहां घडे में जल रखकर सरना के फूल से पानी छींटा जाता है। ठीक इसी समय सरहुल नृत्य प्रारम्भ किया जाता है। सरहुल नृत्य के प्रारंभिक गीतों में धर्म प्रवणता और देवताओं की स्तुति होती है,लेकिन जैसे जैसे रात गहराती जाती है,उसके साथ ही नृत्य और संगीत मादक होने लगता है। यह नृत्य प्रकृति की पूजा का एक बहुत ही आदिम रूप है।
विधि विधान से हुई पूजा अर्चना
आदिवासी उरावं समाज के लोगों ने विधि विधान के साथ सरना स्थल पर पूजा अर्चना किया। सुबह से उपवास रखकर गांव के बुढे बंजूगों लडके और लडकिया गाजे बाजे के साथ सरना स्थल पहुचे। और अरूवा चावल, सिंदुर, धवन रेगवा,मुर्गा लेकर पूजा अर्चना किया। सरहुल महापर्व का शुभआरंभ सुबह 9 बजे से पूजा-अर्चना के साथ हुई। वही उपासको के पूजा,अर्चना की गई।इसके पश्चात सरना भजन संगीत समारोह सहित सांस्कृतिक नृत्य कार्यक्रम के साथ संपन्न हो गई। सरहुल महोत्सव में नृत्य के माध्यम से संस्कृतिक झलक देखने को मिला।
ये थे मौजुद
खरसावां विधायक दशरथ गागराई, भाजपा नेत्री मीरा मुंडा, समाजसेवी बासंती गागराई, दलभंगा ओपी प्रभारी रविन्द्र सिंह मुंडा, मुखिया करम सिंह मुंडा, रेखामनी उरांव, मंगल सिंह मुंडा, पुर्व मुखिया मानसिंह मुंडा, प्रतिमा देवी, लखीराम मुंडा, धर्मेंद्र कुमार मुंडा, भारत सिंह मुंडा, मुन्ना सोय, अजीत कुमार मुंडा, सुखलाल मुंडा, रामचंद्र सिंह मुंडा, संतोष मुंडा, भुवनेश्वर मुंडा, बैकुंठ मुंडा, विमल कुमार मुंडा, सोनामनी मुंडा आदि मौजुद थे।