जनसंवाद, खरसावां (उमाकांत कर): लोसोदिकी गांव में आस्था और परंपरा का अनोखा संगम देखने को मिला, जहां मां दुर्गा और मां मनसा की पूजा के साथ-साथ वर्षों पुरानी परंपरा निया माड़ा अनुष्ठान का आयोजन हुआ। इस अवसर पर हजारों की संख्या में श्रद्धालु शामिल हुए।
परंपरा का महत्व
निया माड़ा अनुष्ठान इस क्षेत्र की सबसे प्राचीन धार्मिक परंपराओं में गिना जाता है। मान्यता है कि मां मनसा की पूजा करने के बाद भक्त अपनी मन्नत पूरी होने पर जलते अंगारों पर नंगे पांव चलते हैं। यह केवल धार्मिक कर्मकांड ही नहीं बल्कि भक्ति, आत्मा की शांति और संकल्प की पूर्ति का प्रतीक है।
भक्तों की आस्था
गांव में जब ढोल-नगाड़ों और भक्ति गीतों की गूंज के बीच अंगारों को सुलगाया गया, तो श्रद्धालुओं का जनसैलाब उमड़ पड़ा। महिलाओं, बुजुर्गों और यहां तक कि छोटे बच्चों को गोद में लेकर माताओं ने भी अंगारों पर चलकर आस्था का परिचय दिया। भक्तों का मानना है कि इस अनुष्ठान से मन और आत्मा की शांति मिलती है और भगवान की महिमा का अनुभव होता है।
लोगों के अनुसार अब तक इस परंपरा में शामिल किसी भक्त को गंभीर चोट या बीमारी नहीं हुई। यहां तक कि पैरों में छाले पड़ने पर भी बिना दवा के कुछ ही दिनों में घाव भर जाते हैं।
विधायक का संबोधन
इस अवसर पर खरसावां विधायक दशरथ गागराई अपनी धर्मपत्नी समाजसेवी बासंती गागराई और पूरे परिवार के साथ मौजूद रहे। उन्होंने कहा कि यह परंपरा हमारी संस्कृति और आस्था की ताकत को दर्शाती है और इसे भविष्य की पीढ़ियों तक पहुंचाना हम सबकी जिम्मेदारी है।
उमड़ा जनसैलाब
आसपास के गांवों से हजारों लोग इस अद्वितीय अनुष्ठान को देखने पहुंचे। ढोल-नगाड़ों की थाप, अंगारों पर चलने वाले भक्तों का जज्बा और मां मनसा की पूजा का उत्साह देखकर पूरा वातावरण भक्तिमय हो गया।
परंपरा की विरासत
स्थानीय ग्रामीणों का कहना है कि निया माड़ा अनुष्ठान उनके पूर्वजों की परंपरा है और आने वाली पीढ़ियों तक इसे जीवित रखने का संकल्प लिया गया है। यह आयोजन गांव की एकता, संस्कृति और आस्था का प्रतीक बन चुका है। लोसोदिकी गांव का यह दृश्य आस्था, भक्ति और परंपरा का दुर्लभ संगम रहा।