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पूर्व सांसद सालखन मुर्मू के नेतृत्व में जमशेदपुर से “मारंग बुरु बचाओ भारत यात्रा” की शुरुआत

By Goutam

Published on:

 

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सोशल संवाद/जमशेदपुर: सेंगेल के राष्ट्रीय अध्यक्ष पूर्व सांसद सालखन मुर्मू के नेतृत्व में मंगलवार को आदिवासी सेंगेल अभियान के द्वारा जमशेदपुर से “मारंग बुरू बचाओ भारत यात्रा” अभियान का शुरुआत किया गया। इस अभियान के तहत सेंगल के द्वारा देश के विभिन्न राज्यों के आदिवासी बहुल जिलों में जनसभा कर जनता को जागरूक किया जाएगा। फिलहाल अभियान फरवरी 2023 के अंत तक चलेगा।

सांसद सह सेंगेल के राष्ट्रीय अध्यक्ष सालखन मुर्मू ने कहा कि झारखंड के गिरिडीह जिला में अवस्थित पारसनाथ पहाड़ अर्थात ‘मारंग बुरू’ आदिवासियों का ईश्वर है। जिसे जैन धर्मावलंबियों ने हड़प लिया है। झारखंड सरकार ने भारत सरकार को प्रेषित पत्र द्वारा मारंग बुरू जैनों को सौंपने का काम किया है। यह दुनिया भर के आदिवासियों के साथ धोखा है। यह आदिवासियों के लिए अयोध्या के राम मंदिर से कम महत्वपूर्ण नहीं है। मारंग बुरू की रक्षा आदिवासी अस्तित्व, पहचान और हिस्सेदारी की रक्षा है।

सांसद सह सेंगेल के राष्ट्रीय अध्यक्ष सालखन मुर्मू ने कहा कि 18 को रांची, 19 को रामगढ़, 20 को हज़ारीबाग़, 21 को जामताड़ा, 22 को दुमका, 23 जनवरी को गोड्डा ज़िलों का यात्रा किया जायेगा। उसके बाद 25.1 23 को पुरूलिया, 26.1.23 को बांकुड़ा और 31.1 23 को चाईबासा में सभाओं का आयोजन होगा। भारत यात्रा के दौरान 2023 में हर हाल में सरना धर्म कोड की मान्यता,  कुरमी एसटी का मामला, झारखंड में प्रखंडवार नियोजन नीति लागू करना, देश के सभी पहाड़ पर्वतों को आदिवासियों को सौंपने का मामला आदि मुद्दों पर प्रकाश डाला जाएगा। 14.1.2023 को महामहिम राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को पत्र प्रेषित कर इन विषयों की जानकारी प्रदान कर दी गई है।

सेंगेल के पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार 17 जनवरी 2023 को 5 प्रदेशों के 50 जिले मुख्यालय में मरांग बुरु बचाओ के लिए धरना प्रदर्शन शुरू हुआ और राष्ट्रपति को ज्ञापन प्रेषित किया जाएगा। उसी प्रकार 30 जनवरी 2023 को 5 प्रदेशों के 50 जिले मुख्यालय में सरना धर्म कोड की मान्यता और अन्य आदिवासी मामलों के लिए मशाल जुलूस निकाला जाएगा।

दिशोम गुरु और ईसाई गुरु के खिलाफ भी आवाज बुलंद किया जाएगा। क्योंकि दोनों और उनके अंधभक्त आदिवासियों के हासा, भाषा, जाति, धर्म, रोजगार आदि को बचाने में बेकार साबित हुए हैं। मारंग बुरु और लुगू बुरु को भी बेचने का काम इन्होंने किया है। जो दुर्भाग्यपूर्ण है।

 

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