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पति की दीर्घायु की कामना के लिए सुहागिन महिलाओं ने किया वट सावित्री व्रत

By Goutam

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वट सावित्री व्रत

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जनसंवाद, खरसावां (उमाकांत कर): खरसावां-कुचाई के आस पास के क्षेत्रों में सुहागन महिलाओं ने विधिव्रत रखकर सावित्री-सत्यवान व इष्टदेवों की पूजा अर्चना कर अपने पति के दीर्घायु होने की कामना की। इसी पूजा को वट सावित्री की पूजा कहा गया है। इस व्रत के परिणामस्वरूप सुखद और संपन्न दांपप्त जीवन का वरदान प्राप्त होता है।

वट सावित्री के दिन सुहागन महिलाओं ने पूरे 16 श्रृंगार कर बड़गद पेड़ के नीचे जुटे और बांस का पंखा, चना, लाल या पीला धागा, धूपबती, फूल, कोई भी पांच फल, जल से भरा पात्र, सिंदूर, लाल कपड़ा आदि पूजा सामानों के साथ पूजा अर्चना की। वही पैड के नीचे बैठक कर सत्यवान एवं सावित्री की कथा सुनी। इस दौरान वट वृक्षों के नीचे दिनभर श्रद्वालु महिलाओं की और से पूजा अर्चना का दौर जारी रहा सुहागिन महिलाएं बरगद पेड में परिक्रमा कर धागा लपेटा।

इस दौरान सत्यवान एवं सावित्री की कथा सुनकर हाथ के पंखे से हवा का र्स्पश करायी। दर्जनों की संख्या में विवाहित महिलाओं ने सत्यवान एवं सावित्री एवं यमराज की पूजा की। पूजा अर्चना में शामिल महिलाएं रंग बिरंगी नये परिधानों से सुसज्जित थी। जबकि कई नव दंपतियों की पहली वट सावित्री रहने के कारण विधि विधान से पूजा अर्चना की गई।

वट सावित्री पूजा की यह मान्यताएं

मान्यता है कि बटवृक्ष के पूजन से महिलाए सुहागिन रहती है। इस व्रत में वट वृक्ष की पूजा अखंड सौभाग्य, अक्षय उन्नति आदि के लिए वृक्ष की पूजा की जाती है। वैसे तो इस व्रत में तीन दिवसीय उपवास का प्रवाधान है, परंतु अधिकांश क्षेत्रों में वट सावित्री व्रत में व्रती एक दिन अर्थात केवल ज्येष्ठ अमावस्या को ही व्रत रखने है। वट वृक्ष की जड़ में ब्रह्मा, तना में भगवान वट वृक्ष की परिक्रमा करते हुए उनके तने में 108 बार कच्चा धागा लपेटा जाता है। हालांकि असमर्थता की स्थिति में सात बार धागा लपटने का प्रावाधान भी है।

 

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