सोशल संवाद/जमशेदपुर: जमशेदपुर पूर्वी के विधायक सरयू राय ने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर कहा कि दोमुहानी जमशेदपुर से आज जो चित्र और विडियो प्रसारित किये गये हैं वे क़ानूनी और प्रशासनिक दृष्टिकोण से चिंताजनक है। जिनपर क़ायदा-क़ानून का क्रियान्वयन करने का दायित्व सरकार ने डाला है यदि उनका ही आचरण नियम-क़ानून के विपरीत होगा, इन प्रावधानों का उलंघन करने वाला होगा तो राज्य में विधि व्यवस्था कैसे बहाल होगी।
स्थानीय मंत्री ने वहाँ कोई निर्माण की घोषणा की है। निर्माण की प्रकृति और प्रकार क्या है। इसका डिज़ाइन क्या है, इसका प्राक्कलन तैयार हुआ है या नहीं, प्राक्कलन की तकनीकी एवं वित्तीय स्वीकृति हुई है या नहीं? इसके अतिरिक्त नदी पर जिस विभाग का अधिकार है उसकी तथा पर्यावरण की स्वीकृति इस कार्य के लिए प्राप्त है या नहीं? वस्तुतः इस बारे में स्पष्टता नहीं है, यह सब हुआ ही नहीं है। इसके बावजूद नदी के पेट में काम शुरू हो गया है।
मंत्री, उपायुक्त, जेएनएसी के विशेष पदाधिकारी वहाँ मौजूद रहकर कार्य का निरीक्षण रहे हैं। यह भी पता नहीं है कि इस कार्य के लिये निधि कहाँ से आएगी। पर काम युद्ध स्तर पर चल रहा है।ठेकेदारों और जेएनएसी के पोकलेन, जेसीबी जबरन काम पर लगाए गये हैं। उपायुक्त ज़िला पर्यावरण समिति की अध्यक्ष हैं। उनका दायित्व पर्यावरण, पारिस्थितिकी का संरक्षण करना है। पर वे ही नदी पर्यावरण/ पारिस्थितिकी के प्रतिकुल होने वाले अनियमित कार्य को प्रोत्साहन दे रही हैं तो किया हो सकता है।
ऐसी परिस्थिति में मेरे पास इसके सिवाय कोई विकल्प नहीं है कि मैं इस मामले में उच्च न्यायालय और/या एनजीटी जाऊँ। यदि क़ानून का रखवाला ही क़ानून तोड़ने लगेगा तो न्यायपालिका के पास जाना ही विकल्प है। मैं अगले मंगलवार को यह मामला उच्च न्यायालय के सामने उठाऊँगा। एक पीआईएल संख्या 1325/2011 नदियों के अतिक्रमण के बारे में उच्च न्यायालय के स्वतः संज्ञान लेने से वहां चल रहा है। इसमें मेरी हस्तक्षेप याचिका स्वीकृत है। इसमें उच्च न्यायालय के आदेश से मुख्य सचिव की अध्यक्षता में एक कमिटी बनी थी जिसमें मेरे अधिवक्ता और टाटा स्टील के प्रतिनिधि शामिल थे। इस बारे में स्वर्णरेखा की पारिस्थितिकी को पुनः बहाल करने का निर्णय हुआ था। टाटा स्टील के तत्कालीन वीपी सीएस ने मेरे साथ नदी तट का दौरा भी किया था और आवश्यक उपाय करने का भरोसा दिया था. आगे क्या हुआ इस बारे में टाटा स्टील ही न्यायालय को बता सकता है।
मैं स्पष्ट करना चाहता हूँ कि नदी प्रकृति धरोहर है, किसी की जागीर नहीं कि कोई जब चाहे मनमानी करें और नदी की पारिस्थितिकी के साथ छेड़छाड करे और प्रशासन ऐसे ग़लत काम का खुलेआम समर्थन करे।