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आदित्यपुर : वार्ड 17 के दुकानदारों की आजीविका पर संकट, निगम की कार्रवाई पर पूर्व पार्षद रंजन सिंह ने उठाए सवाल, स्थायी समाधान की मांग तेज…

By Balram Panda

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आदित्यपुर / Balram Panda: आदित्यपुर नगर निगम के वार्ड संख्या 17 में प्रभात पार्क के सामने वर्षों से दुकान और ठेला लगाकर आजीविका चलाने वाले दुकानदारों की परेशानी बढ़ गई है. निगम प्रशासन द्वारा शनिवार को नोटिस जारी कर दुकानदारों को सोमवार तक दुकानें खाली करने का निर्देश दिए जाने के बाद क्षेत्र में आक्रोश फैल गया है.

स्थानीय दुकानदारों का कहना है कि वे कई वर्षों से इस स्थान पर नास्ता, चाय और भोजन की दुकानें चलाकर अपने परिवार का गुजारा कर रहे हैं. इस क्षेत्र में Meditrina, Siddhesh, Magadh, Medinova, Nu-Life और Sanjeevani जैसे छह बड़े अस्पताल हैं, जहाँ प्रतिदिन दूरदराज़ इलाकों से मरीज और उनके परिजन आते हैं. दुकानदारों के अनुसार, वे उन्हें सस्ते दरों पर नाश्ता और भोजन उपलब्ध कराते हैं.

इसके अलावा, वार्ड 17 में झारखंड के विभिन्न जिलों और अन्य राज्यों से काम या पढ़ाई के लिए आए कई लोग किराये पर रहते हैं, जो रोजमर्रा के भोजन के लिए इन्हीं दुकानदारों पर निर्भर हैं. दुकानदारों का कहना है कि नगर निगम द्वारा कई वार्डों में आवास बोर्ड की दुकानों का आवंटन किया गया है, लेकिन वार्ड 17 में अब तक यह सुविधा नहीं दी गई है.

फुटपाथी दुकानदारों के मुताबिक, उनके पास नगर निगम से जारी लाइसेंस है और वे नियमित रूप से कचरा उठाने का शुल्क भी अदा करते हैं. कई दुकानदारों ने बैंक से लोन लेकर अपना कारोबार शुरू किया है. ऐसे में अचानक दुकानें हटाने का निर्देश उनके लिए आर्थिक संकट बन गया है.

इस मुद्दे पर वार्ड 18 के पूर्व पार्षद रंजन सिंह ने भी नगर निगम प्रशासन पर सवाल उठाए हैं. उन्होंने कहा कि “शहर में सफाई व्यवस्था और बुनियादी सुविधाओं की स्थिति पहले से ही खराब है, अब जीविका चला रहे गरीब दुकानदारों पर कार्रवाई करना अमानवीय कदम है. नगर निगम को ऐसे निर्णयों से पहले वैकल्पिक व्यवस्था सुनिश्चित करनी चाहिए. उन्होंने मांग की कि निगम दुकानदारों की स्थिति को देखते हुए मानवीय दृष्टिकोण अपनाए और उन्हें यथास्थान काम करने की अनुमति दे.

वहीं, दुकानदारों ने आदित्यपुर नगर निगम के अपर नगर आयुक्त और उप नगर आयुक्त, से बिनम्र अनुरोध किया है कि वार्ड 17 की सामाजिक और आर्थिक स्थिति को ध्यान में रखते हुए स्थायी समाधान निकाला जाए. उनका कहना है कि वे निगम के सहयोगी हैं, विरोधी नहीं — इसलिए निगम को उनकी आजीविका बचाने की दिशा में संवेदनशील निर्णय लेना चाहिए.

 

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