लेखक: डी. बी. सुंदरा रामम, वाइस प्रेसिडेंट – कॉर्पोरेट सर्विसेज, टाटा स्टील
जनसंवाद, जमशेदपुर: भारत की सांस्कृतिक धरोहर की सबसे प्रभावशाली छवियों में से एक वह क्षण है, जब श्रीकृष्ण ने युद्धभूमि कुरुक्षेत्र में निराश और विचलित अर्जुन को गीता का उपदेश दिया। उन्होंने आत्मा की अमरता और उसकी असीमता का बोध कराते हुए अर्जुन से शोक और मोह छोड़कर धनुष उठाने और धर्म के लिए युद्ध करने का आह्वान किया। इसी प्रकार, रामायण में भगवान राम और लक्ष्मण, वनवास के कठिन मार्ग पर केवल अपने धनुष-बाण के सहारे ही अधर्म और अन्याय के प्रतीक रावण का अंत करते हैं। भगवान शिव के अचल धनुष की पौराणिक कथा से लेकर सिंधु घाटी की मुहरों पर अंकित धनुर्धर देवताओं तक, भारतीय इतिहास, लोककथाओं और अध्यात्म में धनुर्विद्या केवल शस्त्र नहीं, बल्कि धर्म, साहस और संस्कृति का प्रतीक बनकर गहराई से रची-बसी है।
इतिहास के पन्ने पलटते ही एक और जीवंत और प्रेरक अध्याय सामने आता है। झारखंड के लातेहार ज़िले में, शांत औरंगा नदी के तट पर खड़े पालाामऊ किले के खंडहर केवल पत्थरों का ढेर नहीं, बल्कि साहस और स्वतंत्रता की गाथा हैं। ये दीवारें उस समय की साक्षी हैं, जब चेऱो आदिवासी अपने धनुष-बाण की अद्भुत दक्षता और अपराजेय साहस के लिए विख्यात थे। चेऱो योद्धाओं ने न केवल आक्रमणकारियों को रोका, बल्कि अपने कौशल से यह सिद्ध कर दिया कि आत्मसम्मान और स्वतंत्रता की रक्षा किसी भी साम्राज्य से बड़ी शक्ति है। उन्होंने मुग़ल साम्राज्य की विशाल सेना को ललकारा और अंग्रेज़ी साम्राज्य की बढ़ती ताकत से भी बेख़ौफ़ होकर लड़े। धनुर्विद्या उनकी पहचान थी, पर साहस उनकी आत्मा। इसी संयोजन ने उन्हें न सिर्फ योद्धा बनाया, बल्कि स्वतंत्रता और पराक्रम का जीवंत प्रतीक भी बनाया। झारखंड की धरती पर फैले इन खंडहरों की खामोशी आज भी उनके अदम्य उत्साह और अजेय जज़्बे की गूंज सुनाती है—एक ऐसा संदेश, जो पीढ़ियों को साहस, स्वाभिमान और स्वतंत्रता के महत्व की याद दिलाता रहता है।
सदियों बाद भी भारत गर्व से उन असाधारण तीरंदाजों की परंपरा को आगे बढ़ा रहा है, जिन्होंने अपनी अद्भुत प्रतिभा से देश को वैश्विक स्तर पर सम्मान और पहचान दिलाई है। यह उत्कृष्टता की परंपरा, जिसकी जड़ें इतिहास और पौराणिक कथाओं में गहराई से समाई हैं, आज भी उतनी ही जीवंत और सशक्त है। आधुनिक दौर में इस प्रतिभा को संवारने और नई ऊँचाइयों तक पहुँचाने में टाटा स्टील की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण रही है। खेलों को सदैव प्राथमिकता देने की अपनी परंपरा को आगे बढ़ाते हुए, टाटा स्टील ने न केवल खिलाड़ियों को सशक्त बनाया है, बल्कि उत्कृष्ट खेल संस्कृति को भी बढ़ावा दिया है। यही संकल्प आज के भारत के तीरंदाजों को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर चमकने की प्रेरणा देता है।
हाल ही में आर्चरी प्रीमियर लीग (एपीएल) की शुरुआत इस गौरवशाली सफ़र में एक और ऐतिहासिक मील का पत्थर साबित हुई है। अतीत के महानायक धनुर्धरों को शानदार श्रद्धांजलि देते हुए, झारखंड की अपनी टीम ने “चेऱो आर्चर्स” नाम अपनाया है। यह नाम केवल एक पहचान नहीं, बल्कि उस परंपरा और शौर्य का प्रतीक है, जो पीढ़ियों से झारखंड की मिट्टी में रचा-बसा है। आधुनिक खेलों की महत्वाकांक्षा और प्राचीन पराक्रम का यह अनूठा संगम, इतिहास को वर्तमान से जोड़ता है और आने वाले भविष्य को नई ऊर्जा प्रदान करता है।
टाटा स्टील द्वारा अक्टूबर 1996 में स्थापित टाटा आर्चरी अकादमी (टीएए) लगभग तीन दशकों से प्रतिभा को निखारने का एक उज्ज्वल प्रतीक बनी हुई है। भारत में आर्चरी प्रशिक्षण का नया मॉडल प्रस्तुत करने वाली इस अकादमी ने खेलों की दुनिया में एक नई दिशा दी। एक रेज़िडेंशियल सेंटर ऑफ़ एक्सीलेंस के रूप में इसकी मूल भावना रही है– वैज्ञानिक पद्धति से खिलाड़ियों को प्रशिक्षित कर उन्हें राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं के लिए तैयार करना। खास तौर पर झारखंड–ओडिशा क्षेत्र की आदिवासी समुदायों में निहित समृद्ध प्रतिभा को पहचानना और उसे वैश्विक मंच तक पहुँचाना, टीएए का सबसे बड़ा संकल्प रहा है।लड़कियों और लड़कों दोनों को समान अवसर प्रदान करनेवाले टाटा आर्चरी अकादमी (टीएए) ने एक व्यापक पारिस्थितिकी तंत्र विकसित किया है। यह नेटवर्क जमीनी स्तर से शुरू होकर फीडर, सैटेलाइट और ट्रेनिंग सेंटरों तक फैला हुआ है, जो टाटा स्टील के सभी परिचालन क्षेत्रों में सक्रिय हैं – यहाँ तक कि जामाडोबा, वेस्ट बोकारो और नोआमुंडी जैसे दूरस्थ खनन क्षेत्रों में भी। इस रणनीतिक विस्तार का उद्देश्य केवल एक विशाल प्रतिभा-भंडार तैयार करना ही नहीं है, बल्कि स्थानीय समुदायों को सशक्त और समृद्ध बनाना भी है।
टाटा आर्चरी अकादमी (टीएए) के कैडेट्स को विश्वस्तरीय इंफ्रास्ट्रक्चर, अनुभवी कोच और पूरी तरह से समर्पित सपोर्ट टीम का लाभ मिलता है। इस टीम में स्ट्रेंथ और कंडीशनिंग विशेषज्ञ, खेल मनोवैज्ञानिक, फिजियोथेरेपिस्ट, न्यूट्रिशनिस्ट और मसाज थेरेपिस्ट शामिल हैं, जो खिलाड़ियों की क्षमता को हर पहलू से निखारते हैं। सिर्फ प्रशिक्षण ही नहीं, बल्कि उत्कृष्ट उपकरणों और आधुनिक सुविधाओं के साथ, युवा तीरंदाजों को अकादमी की राज्य और राष्ट्रीय खेल संस्थाओं के साथ साझेदारियों के माध्यम से महत्वपूर्ण पेशेवर अवसर भी प्राप्त होते हैं।
टाटा आर्चरी अकादमी (टीएए) की अटूट लगन और कठोर प्रशिक्षण ने इसके खिलाड़ियों को अंतरराष्ट्रीय मंच पर चमकने का अवसर दिया है। इसका शानदार उदाहरण 2023 के एशियाई खेलों में हासिल किया गया प्रतिष्ठित कांस्य पदक है, जिसे टीएए की कैडेट्स अंकिता भकत और भजन कौर की टीम ने जीता।
अंकिता भकत ने पेरिस 2024 समर ओलंपिक में सेमीफाइनल तक पहुँचकर इतिहास रच दिया, जो अकादमी की लगातार सफलता और प्रभाव का जीता-जागता प्रमाण है। स्थापना के बाद से, टाटा आर्चरी अकादमी (टीएए) ने कई उल्लेखनीय चैंपियनों को तैयार किया है, जिनमें नौ ओलंपियन, तीन द्रोणाचार्य पुरस्कार विजेता, एक लाइफटाइम द्रोणाचार्य पुरस्कार विजेता और 150 से अधिक अंतरराष्ट्रीय तीरंदाज शामिल हैं।इसलिए, टाटा स्टील का आर्चरी प्रीमियर लीग में रणनीतिक प्रवेश एक स्वाभाविक कदम है, जो इस खेल को बढ़ावा देने और इसे नई ऊँचाइयों तक पहुँचाने के प्रति इसकी प्रतिबद्धता को और मजबूत करता है।
चेऱो आर्चर्स टीम अपनी प्रख्यात और दमदार टीम पर गर्व करती है, जिसमें विश्व स्तरीय तीरंदाज शामिल हैं। डेनमार्क के मैथियास फुलर्टन, जो कम्पाउंड आर्चरी में वर्तमान वर्ल्ड नंबर 1 हैं, टीम में अद्वितीय विशेषज्ञता और अनुभव लेकर आए हैं। भारत के ओलंपियन और पूर्व टीएए खिलाड़ी अतानु दास के साथ रिकर्व आर्चरी में वर्ल्ड नंबर 9 कैथरिना बाउर भी टीम का हिस्सा हैं। इसके अलावा, भारतीय तीरंदाजों के मजबूत दल में राहुल (रिकर्व), प्रिथिका प्रदीप (कम्पाउंड), मडाला हमसिनी (कम्पाउंड), साहिल राजेश (कम्पाउंड) और कुमकुम मोहोड (रिकर्व) शामिल हैं।
यह स्टार टीम 2 से 12 अक्टूबर तक होने वाले आर्चरी प्रीमियर लीग के पहले संस्करण में प्रिथ्विराज योद्धा, काकतिया नाइट्स, माइटी मराठा, राजपूताना रॉयल्स और चोल चीफ्स जैसी सशक्त टीमों के खिलाफ मुकाबला करेगी। इस लीग में प्राचीन धनुर्विद्या की परंपरा और आधुनिक खेल उत्साह का संगम देखने को मिलेगा, जो दर्शकों के लिए रोमांच और प्रेरणा का अद्वितीय अनुभव प्रस्तुत करेगा।