जनसंवाद, जमशेदपुर: नारायण आईटीआई, लुपुंगडीह चांडिल परिसर में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अग्रदूत लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक की पुण्यतिथि पर भावभीनी श्रद्धांजलि दी गई। कार्यक्रम के दौरान उनके चित्र पर माल्यार्पण कर श्रद्धा सुमन अर्पित किए गए।
इस अवसर पर संस्थान के संस्थापक डॉ. जटाशंकर पांडे ने कहा कि लोकमान्य तिलक केवल एक स्वतंत्रता सेनानी ही नहीं, बल्कि शिक्षक, समाज सुधारक, वकील और कट्टर राष्ट्रवादी भी थे। उन्होंने भारतीय जनमानस को स्वतंत्रता की आवश्यकता का बोध कराया। अंग्रेज उन्हें “भारतीय अशांति के जनक” कहते थे, जबकि वे जनता के हृदय में परिवर्तन लाने वाले युगपुरुष थे।
“स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं उसे लेकर ही रहूँगा”—लोकमान्य तिलक द्वारा दिया गया यह नारा आज भी प्रत्येक भारतीय को प्रेरणा देता है।
डॉ. पांडे ने आगे कहा कि तिलक ने ‘केसरी’ (मराठी) और ‘मराठा’ (अंग्रेजी) जैसे लोकप्रिय समाचार पत्रों की स्थापना की, जिनके माध्यम से वे ब्रिटिश शासन की क्रूरता और भारतीय संस्कृति के प्रति हीनभावना का विरोध करते थे। उन्होंने पूर्ण स्वराज की माँग की और अपने लेखों के चलते कई बार जेल भी गए।
1907 में कांग्रेस के गरम दल और नरम दल में विभाजन हुआ, जिसमें तिलक गरम दल के प्रमुख नेता बने। लाल-बाल-पाल के नाम से प्रसिद्ध तीनों नेताओं—लाला लाजपत राय, बिपिन चंद्र पाल और लोकमान्य तिलक—ने स्वतंत्रता संग्राम को जन-जन तक पहुँचाया। तिलक ने क्रांतिकारियों का भी समर्थन किया, जिसकी वजह से उन्हें बर्मा (अब म्यांमार) के मांडले जेल भेजा गया।
कार्यक्रम में विशेष रूप से उपस्थित रहे एडवोकेट निखिल कुमार, प्रकाश महतो, देवाशीष मंडल, पवन महतो, शशि भूषण महतो, संजीत महतो, कृष्ण पद महतो, अजय मंडल, कृष्णा महतो, गौरव महतो, निमाई मंडल समेत कई गणमान्य लोग शामिल हुए।